R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन तथा निरावेशन, परिपथ का कालांक

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R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन तथा निरावेशन

माना एक C धारिता का संधारित्र है जोकि श्रेणीक्रम में एक R प्रतिरोध के प्रतिरोधक से जुड़ा हुआ है तथा E विद्युत वाहक बल की बैटरी तथा एक द्वि-मार्गी कुंजी SMN से सम्बद्ध है, स्विच S की सहायता से बैटरी परिपथ में सम्बद्ध की जा सकती है अथवा हटायी जा सकती है।

R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन

संधारित्र का आवेशन को चित्र में श्रेणीक्रम में जुड़े प्रतिरोध R तथा धारिता C के परिपथ को कुंजी SM से जोड़कर बैटरी से लगाया गया है। इससे संधारित्र आवेशित होने लगता है जैसा की चित्र-1 में दिखाया गया है

R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन तथा निरावेशन

माना किसी समय t पर प्रतिरोध R में धारा i तथा संधारित्र पर q आवेश स्थित है, तब
प्रतिरोध R के सिरों के बीच विभवान्तर = Ri
संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवान्तर = \frac{q}{C}
अतः इस बन्द परिपथ में किरचाॅफ के वोल्टेज नियम लगाने पर,
Ri + \frac{q}{C} = E
किन्तु i = \frac{dq}{dt} , अतः
R \frac{dq}{dt} + \frac{q}{C} = E
या R \frac{dq}{dt} = E – \frac{q}{C}
या dt = R \frac{dq}{E} . \frac{q}{C}
या dt = RC \frac{(-1/C)dq}{E- q/C}
समाकलन करने पर,
t = – RC loge(E – \frac{q}{C} ) + A …(1)
यहां ‘A’ समाकलन नियतांक है प्रारंभिक प्रतिबन्ध से, t = 0 पर q = 0,
अतः समीकरण (1) से,
0 = – RC logeE + A
इसलिए,
A = RC logeE
अब A का मान समीकरण (1) में रखने पर,
t = – RC loge(E – \frac{q}{C} ) + RC logeE
या t = – RC loge(E – \frac{q/C}{E} )
या loge(E – \frac{q/C}{E} ) = – \frac{t}{RC}
या \frac{E - q/C}{E} = e-t/RC
या E – \frac{q}{C} = Ee-t/RC
या q = CE (1 – e-t/RC) …(2)
किन्तु CE = q0 (आवेश का अधिकतम मान)
अतः
\footnotesize \boxed{ q = q_0(1 - e^{-t/RC}) } …(3)
“यही t सेकंड बाद संधारित्र की प्लेटों पर आवेश का समीकरण है” तथा समीकरण आवेश q के किसी समय t पर आवेश के मान को बताता है जैसा कि चित्र-2 में दर्शाया गया है।

R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन तथा निरावेशन

अर्थात् इस प्रकार समीकरण से स्पष्ट है कि –
(1). जब t = ∞, तब q = q0 अर्थात् संधारित्र को पूर्णतः आवेशित होने में अनन्त समय लगता है।
(2). संधारित्र पर आवेश की वृद्धि चरघातांकी नियम के अनुसार होती है। अर्थात् सर्वप्रथम आवेश तेजी से बढ़ता है तथा फिर धीरे-धीरे बढ़ता है जैसे कि ऊपर चित्र में समय के साथ संधारित्र का आवेश की वृद्धि को दिखाया गया है।

परिपथ का कालांक

यहां राशि RC की विमाएं ठीक वही है जो समय t की है, तब इसमें पद RC को परिपथ का धारितीय नियतांक या परिपथ का कालांक या समय-नियतांक कहते हैं तथा इसे λ से व्यक्त करते हैं। अतः λ = RC,
अर्थात् t = RC = λ हों, तो समीकरण (3) में t = RC रखने पर,
q = q0(1 – e-1) या q = q0(1 – \frac{1}{e} )
या q = q0(1 – \frac{1}{2.718} )
अथवा
q = q0(1 – 0.368)
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ q = 0.632q_0 }
अर्थात् ‘R-C परिपथ का समय-नियतांक उस समय के बराबर होता है जिसमें संधारित्र पर आवेश अन्तिम मान का 0.632 गुना हो जाता है।’

आवेश वृद्धि की दर अथवा परिपथ में धारा

i = \frac{dq}{dt}
या i = \frac{d}{dt} [q0(1 – e-t/RC)]
या i = q0 \frac{d}{dt} (1 – e-t/RC)
या i = q0[e-t/RC (1 – \frac{1}{RC} )
या i = \frac{q_0}{RC} e-t/RC
अथवा
i = \frac{q_0}{RC} ( \frac{q_0 - q}{q_0} )
अर्थात्
i = \frac{1}{RC} (q0 – q)
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे संधारित्र पर आवेश q का मान बढ़ता है वैसे-वैसे q0 – q का मान घटता है अतः आवेश वृद्धि की दर dq/dt तथा परिपथ में धारा i भी घटती है।

R-C परिपथ में संधारित्र का निरावेशन

माना पहले S को M से जोड़कर संधारित्र को q0 आवेश तक आवेशित किया जाता है जैसा कि चित्र-1 में दिखाया गया है। अर्थात् अब SM को खोलकर SN को जोड़ते हैं इससे संधारित्र प्रतिरोध R के द्वारा निरावेशित होने लगता है। माना किसी क्षण t पर परिपथ में धारा i है, तब
प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर = iR
संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवान्तर = \frac{q}{C}
अतः किरचाॅफ के द्वितीय नियम KVL से,
iR + \frac{q}{C} = 0
किन्तु i = \frac{dq}{dt}
या R \frac{dq}{dt} + \frac{q}{C} = 0
या \frac{dq}{q} = – \frac{dt}{RC}
समाकलित करने पर,
logeq = – \frac{t}{RC} + B …(4)
यहां B समाकलन नियतांक है।
अब t = 0 पर q = q0 अतः
logeq0 = 0 + B = B
B का मान समीकरण (4) में रखने पर,
logeq = – \frac{t}{RC} + logeq0
या loge( \frac{q}{q_0} ) = -t/RC
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ q = q_0e^{-t/RC} } …(5)
यही “आवेशित संधारित्र के निरावेशन के लिए अभीष्ट सूत्र है।” अतः प्रतिरोध R से होकर संधारित्र के निरावेशन की समीकरण को प्रदर्शित करती है जैसा कि चित्र-3 में दिखाया गया है।

R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन तथा निरावेशन

अर्थात् इस प्रकार समीकरण से स्पष्ट है कि –
(1). जब t = ∞ तब q = 0 अर्थात् संधारित्र को पूर्णतः निरावेशित होने पर अनन्त समय लगता है।
(2). संधारित्र पर आवेश की कमी चरघातांकी नियम के अनुसार होती है अर्थात् प्रारंभ में आवेश तेजी से घटता है तथा फिर धीरे-धीरे घटता है अतः चित्र में समय t के साथ संधारित्र पर आवेश के क्षय को प्रदर्शित करता है।

परिपथ का कालांक

यहां राशि RC की विमाएं ठीक वहीं है जो समय t की है। अतः राशि RC को परिपथ का कालांक कहते हैं।
अब समीकरण (5) में t = RC रखने पर,
q = q0e-1 = \frac{q_0}{e}
या q = \frac{q_0}{2.718}
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ q = 0.368q_0 }
अर्थात् R-C परिपथ का कालांक है जिसमें संधारित्र पर आवेश अपने अधिकतम मान से घटकर अधिकतम मान का 0.368 गुना रह जाता है।

आवेश क्षय की दर अथवा परिपथ में धारा

i = \frac{dq}{dt} = \frac{d}{dt} (q0e-t/RC)

या i = q0e-t/RC (- \frac{1}{RC} ), या i = – \frac{q}{RC} e-t/RC
अर्थात्
i = – \frac{q}{RC}
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे संधारित्र पर आवेश q का मान घटता है वैसे-वैसे परिपथ में धारा i भी घटती जाती है।

Note – R-C परिपथ में संधारित्र का आवेशन तथा निरावेशन से संबंधित प्रशन –
Q.1 श्रेणीक्रम में जुड़े प्रतिरोध R तथा धारिता C के परिपथ में एक स्थिर मान का विद्युत वाहक बल E लगाया जाता है। संधारित्र की प्लेटों के आवेशन तथा निरावेशन में आवेश वृद्धि तथा क्षय के लिए समीकरण प्राप्त कीजिए। तथा इस परिपथ के समय-नियतांक को परिभाषित कीजिए?
Q.2 एक संधारित्र तथा प्रतिरोध युक्त परिपथ में आवेशन के समय संधारित्र की प्लेटों पर आवेश तथा परिपथ में धारा के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। परिपथ के कालांक से आपका क्या तात्पर्य है?

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