प्रेरकत्व से होकर एक संधारित्र का निरावेशन | Discharge of a Capacitor Through an Inductance in Hindi

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प्रेरकत्व से होकर एक संधारित्र का निरावेशन

इस अध्याय में संधारित्र के निरावेशन के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे, जैसा कि एक आदर्श L-C परिपथ की प्रकृति दोलनीय होती है। अर्थात्
माना एक आवेशित संधारित्र C, श्रेणीक्रम में जुड़े प्रेरकत्व L तथा प्रतिरोध R के एक परिपथ से होकर निरावेशित होता है। तब दोलनी निरावेशन की प्रकृति की व्याख्या कीजिए ।

“माना परिपथ में C धारिता का एक संधारित्र, L प्रेरकत्व की एक कुंडली, E विद्युत वाहक बल की एक बैटरी तथा एक द्विपथ कुंजी m व n लगी है। बैटरी E तथा प्रेरकत्व L को परिपथ में स्विच s की सहायता से जोड़ा अथवा निकाला जा सकता है।” जैसा कि चित्र-1 में दिखाया गया है।

प्रेरकत्व से होकर एक संधारित्र का निरावेशन

यदि जब स्विच s, m स्थिति में होता है तो परिपथ में बैटरी E तथा संधारित्र C दोनों होते हैं, परंतु जब स्विच s, n स्थिति में होता है तो परिपथ में प्रेरकत्व L तथा संधारित्र C होते हैं।
प्रारंभ में स्विच s को m स्थिति में लाकर संधारित्र को q0 आवेश तक आवेशित किया जाता है, जब स्विच s को m से असम्बध्द कर n स्थिति में लाया जाता है तथा संधारित्र को प्रेरकत्व L से होकर निरावेशित किया जाता है।

निरावेशन की प्रकृति की व्याख्या

माना कि निरावेशन की प्रक्रिया में t समय बाद संधारित्र पर आवेश q है तथा परिपथ में धारा i के परिवर्तन की दर di/dt है।
संधारित्र के सिरों पर विभवांतर, VC = q/C
प्रेरकत्व के सिरों पर विभवांतर, VL = L di/dt
इसलिए, किरचाॅफ के द्वितीय नियमानुसार, विद्युत वाहक बल का समीकरण
L di/dt + q/C = 0 …(1)
चूंकि i = dq/dt, अतः समीकरण (1) से,
इसलिए, L d2q/dt2 + q/C = 0
अथवा d2q/dt2 + q/LC = 0 …(2)
चूंकि 1/LC = ω20 …(3)
d2q/dt2 + ω20q = 0 …(4)
अतः समीकरण (4) द्वितीय क्रम का रैखिक अवकलन समीकरण है तथा आवेश q का समय t के सापेक्ष परिवर्तन को निरूपित करता है। माना अब समीकरण (4) को हल करने पर,
q = Aeαt …(5)
यहां A तथा α यादृच्छिक है, समीकरण (5) को t के सापेक्ष अवकलित करने पर,
dq/dt = Aαeαt तथा d2q/dt2 = Aα2eαt …(6)
अब समीकरण (5) तथा (6) से q तथा d2q/dt2 के मान समीकरण (4) में रखने पर,
2eαt + ω20Aeαt = 0
अथवा
Aeαt2 + ω20) = 0
चूंकि q = Aeαt = 0 इसलिए α2 + ω20 = 0 अथवा α2 = – ω20 अथवा α2 = j2ω20
अर्थात् , α = ± jω0
α के ये दो मान यह निर्देशित करते हैं कि समीकरण (5) के दो हल होंगे, तब
q = A1e0t + A2e-jω0t …(7)
यहां A1 व A2 यादृच्छिक नियतांक है। समीकरण (7) को निम्न प्रकार भी निरूपित किया जा सकता है, अर्थात्
q = aSin(ω0t + φ) …(8)
यहां a तथा φ नए नियतांक है तथा इसका मान निम्नलिखित प्रारंभिक प्रतिबंधों से ज्ञात किया जाता है। अब प्रतिबंध t = 0 पर q = q0, समीकरण (8) में रखने पर,
q0 = aSinφ …(9)
अतः समीकरण (8) का अवकलन करने पर,
dq/dt = aω0Cos(ω0t + φ) …(10)
अब प्रतिबंध t = 0 पर i = dq/dt = 0, समीकरण (10) में रखने पर,
0 = aω0Cosφ
चूंकि aω0 = 0 अतः Cosφ = 0 अथवा φ = π/2, तब φ का मान समीकरण (9) में रखने पर,
a = q0
यदि समीकरण (11) तथा (12) की सहायता से समीकरण (10) हो जाएगा।
q = q0Sin(ω0t + π/2)
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ q = q_0Cosω_0t } …(13)
“यही प्रेरकत्व L से होकर संधारित्र C के निरावेशन का समीकरण है।”

संधारित्र के प्रेरकत्व के दोलनों की आवृत्ति

माना ω0 = 1/ \sqrt{LC} यह प्रदर्शित करता है कि किसी संधारित्र का प्रेरकत्व से होकर निरावेशन दोलनी तथा सरल आवर्त होता है।
q = q0Cosω0t t’
चूंकि यदि t’ = t + 2π/ω0 पर समीकरण (13) से,
q = q0Cosω0t(t + 2π/ω0)
अथवा, q = q0Cosω0t
यह समीकरण (13) के समान है इसका तात्पर्य है आवर्त गति 2π/ω0 समय के बाद पुनरावृत्ति होती है। अतः 2π/ω0 दोलन का आवर्तकाल होगा । अतः आवर्तकाल
T = 2π/ω0 या T = 2π/1/ \sqrt{LC}
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ T = 2π \sqrt{LC} } …(14)

दोलनों की आवृत्ति

f = 1/T = 1/2π \sqrt{LC} …(15)
अतः समीकरण (13) से परिपथ में धारा,
i = dq/dt = d/dt(q0Cosω0t)
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ i = q_0ω_0Sinω_0t } …(16)
यह समीकरण प्रदर्शित करता है कि परिपथ में धारा दोलनी होती है तथा इसकी आवृत्ति आवेश की आवृत्ति f के समान होती है।

निरावेशित दोलनों की व्याख्या (Explanation of Oscillations in Hindi)

संधारित्र से प्रेरकत्व में अथवा वैद्युत क्षेत्र से चुंबकीय क्षेत्र में उर्जा के आदान-प्रदान के कारण L-C परिपथ में दोलन होते हैं।
माना कि प्रारंभ में संधारित्र पूर्णतः आवेशित है जिसके कारण परिपथ में धारा का मान शून्य होता है। अब संधारित्र प्रेरकत्व से होकर निरावेशित होना प्रारंभ होता है तथा परिपथ में धारा i स्थापित होती है, जैसे-जैसे q का मान कम होता है। संधारित्र की प्लेटों के बीच स्थित विद्युत् क्षेत्र द्वारा संचित ऊर्जा का मान भी कम हो जाता है। यह ऊर्जा इस चुंबकीय क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाती है जोकि धारा i के स्थापित होने के कारण प्रेरकत्व के चारों ओर बन जाती है।

अतः जैसे-जैसे विद्युत् क्षेत्र कम होता जाता है वैसे-ही चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता जाता है।
अर्थात् ऊर्जा विद्युत् क्षेत्र से चुम्बकीय क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाती है। अतः संधारित्र में आवेशन तथा निरावेशन की क्रिया होती रहती है, यह प्रक्रिया एक निश्चित आवृत्ति f = 1/2π \sqrt{LC} से निरंतर होती रहती है। अर्थात्
ऐसे स्थिर आयाम के L-C दोलित्र एक बार प्रारंभ होने के बाद अनन्त काल तक होते रहते हैं। अतः ऊर्जा का संधारित्र C में स्थित विद्युत् क्षेत्र का प्रेरकत्व L में चुम्बकीय क्षेत्र के बीच आदान-प्रदान होता रहता है। जैसा की ग्राफ में दिखाया गया है।

प्रेरकत्व से होकर एक संधारित्र का निरावेशन

परन्तु एक वास्तविक L-C परिपथ में प्रेरकत्व के सीमित प्रतिरोध R के कारण यह दोलन अनन्त काल तक बने नहीं रहते हैं। अतः इस प्रतिरोध R के कारण वैद्युत् ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में धीरे-धीरे क्षय होता है। इस अवमन्दक प्रभाव के कारण दोलनों का आयाम धीरे-धीरे कम होने लगता है तथा अन्त में शून्य हो जाता है। इस स्थिति में प्राप्त दोलनी धारा को अवमन्दित दोलनी धारा कहते हैं।

Note – सम्बन्धित प्रशन –
Q.1 एक आवेशित संधारित्र श्रेणीक्रम से जुड़े प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध के एक परिपथ से होकर निरावेशित होता है? निरावेशन की प्रकृति की व्याख्या कीजिए तथा दोलनी निरावेशन का विशेष संदर्भ दीजिए।

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