L-R परिपथ में धारा वृद्धि तथा क्षय की व्याख्या?

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L-R परिपथ में धारा वृद्धि

एक परिपथ में प्रेरकत्व L तथा प्रतिरोध R बैटरी E से श्रेणीबद्ध हैं जैसा कि चित्र-1 में दिखाया गया है।

L-R परिपथ में धारा वृद्धि
L-R परिपथ में धारा वृद्धि

जब कुंजी K को दबाया जाता है, तो धारा का मान शून्य से अपने अधिकतम मान I0 तक बढ़ना प्रारंभ हो जाता है। यदि धारा का तत्कालिक मान I हो तो प्रेरकत्व कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल L \frac{dI}{dt} तथा प्रतिरोध के सिरों के मध्य विभान्तर RI है। अतः (किरचाॅफ के नियम) KVL से,
E – L \frac{dI}{dt} = IR
या E – IR = L \frac{dI}{dt} …(1)
या \frac{dI}{E - RI} = \frac{dt}{L}
समाकलन करने पर,
\int \frac{dI}{E - RI} = \int \frac{dt}{L} + A1
यहां A1 समाकलन नियतांक है।
या – \frac{1}{R} loge(E – RI) = \frac{t}{L} + A1 …(2)
अब चूंकि t = 0 पर, I = 0, अतः
\frac{1}{R} logeE = 0 + A1
या A1 = – \frac{1}{R} logeE
A1 का मान समीकरण (2) में रखने पर,
\frac{1}{R} loge(E – RI) = \frac{t}{L} \frac{1}{R} logeE
या \frac{1}{R} [loge(E – RI) – logeE] = – \frac{t}{L}
या loge( \frac{E - RI}{E} ) = – \frac{R}{L} .t
या 1 – \frac{RI}{E} = e-(R/L).t
या \frac{RI}{E} = 1 – e-(R/L).t
या I = \frac{E}{R} [1 – e-(R/L).t] …(3)
विद्युत धारा का अधिकतम मान (I0), t = ∞ पर प्राप्त होता है। अतः
I0 = \frac{E}{R} …(4)
अब समीकरण (3) से,
\footnotesize \boxed{ I = I_0[1 - e^{-(R/L).t}] } …(5)
यही “L-R परिपथ में धारा वृद्धि का समीकरण है।” इसके अनुसार, परिपथ में धारा ‘चरघातांकी’ नियमानुसार बढ़ती है। धारा व समय के बीच ग्राफ चित्र-2 में दर्शाया गया है।

L-R परिपथ में धारा वृद्धि

अर्थात् इस प्रकार समीकरण से स्पष्ट है कि –

  • जब t = ∞ तब I = I0, अर्थात् परिपथ में धारा को अपना अधिकतम स्थायी मान प्राप्त करने में अनन्त समय लगता है।
  • परिपथ में धारा की वृद्धि चर घातांकी नियम के अनुसार होती है। अर्थात् प्रारंभ में धारा तेजी से बढ़ती है तथा फिर धीरे-धीरे बढ़ती है।

धारा में वृद्धि की दर

समीकरण (5) का आकलन करने पर धारा वृद्धि की दर,
\frac{dI}{dt} = \frac{d}{dt} [I0(1 – e-(R/L).t)]
\frac{dI}{dt} = I0 \frac{d}{dt} [1 – e-(R.t/L)]
या \frac{dI}{dt} = I0[ – e-R.t/L (- \frac{R}{L} )]
या \frac{dI}{dt} = I0 \frac{R}{L} [e-R.t/L]
अथवा
\frac{dI}{dt} = I0 \frac{R}{L} [1 – \frac{I}{I_0} ]
अर्थात्
\frac{dI}{dt} = \frac{R}{L} [I0 – I] …(6)
अतः समीकरण (6) से स्पष्ट है कि “R/L का मान जितना अधिक होगा या L/R जितना कम होगा, धारा उतनी ही तेजी से अपने महत्तम मान की ओर अग्रसर होगी।” निष्पत्ति L/R को परिपथ का ‘प्रेरण समय-नियतांक’ कहते हैं। इसकी विमा, समय की विमा होती है।

L-R परिपथ का समय-नियतांक

माना राशि L/R की विमाएं ठीक वही हैं जो समय t की है। अतः राशि L/R को ‘L-R परिपथ का समय नियतांक’ या ‘L-R परिपथ का कालांक’ कहते हैं। अर्थात्
समीकरण (5) में t = \frac{L}{R} रखने पर,
I = I0(1 – e-1)
या I = I0(1 – \frac{1}{e} )
या I = I0(1 – \frac{1}{2.718} )
या I = I0(1 – 0.368)
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ I = 0.632I_0 } …(7)
अर्थात् “किसी L-R परिपथ का समय नियतांक उस समय के बराबर है, जो परिपथ में धारा अपने अन्तिम स्थायी मान का 63.2% मान प्राप्त कर लेती है।

L-R परिपथ में धारा क्षय

अब परिपथ से विद्युत वाहक बल का स्त्रोत हटाकर परिपथ बनाते हैं जैसा की चित्र-3 में दिखाया गया है।

L-R परिपथ में धारा क्षय
L-R परिपथ में धारा क्षय

इससे परिपथ में धारा क्षय होने लगती है। कुण्डली का प्रेरकत्व धारा के क्षय होने का विरोध करता है। माना किसी क्षण क्षय होते समय धारा का मान I हो, तो परिपथ में किरचाॅफ का वोल्टेज नियम लगाने पर,
-L \frac{dI}{dt} = RI
या dt = – \frac{L}{R} .L \frac{dI}{I}
समाकलन करने पर,
t = – \frac{L}{R} logeI + A2 …(8)
यहां A2 समाकलन नियतांक है।
यदि जब t = 0, तब I = I0 धारा का प्रारंभिक या अधिकतम मान,
A2 = \frac{L}{R} logeI0
तथा A2 का मान समीकरण (8) में रखने पर,
t = – \frac{L}{R} logeI + \frac{L}{R} logeI0
अथवा
-( \frac{R}{L} ).t = loge( \frac{I}{I_0} )
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ I = I_0e^{-(R/L).t} } …(9)
यही “L-R परिपथ में धारा क्षय का समीकरण है।” इसके अनुसार परिपथ में धारा ‘चरघातांकी’ रूप में क्षय होती है। धारा व समय के बीच ग्राफ चित्र-4 में दर्शाया गया है।

L-R परिपथ में धारा क्षय

अर्थात् इस प्रकार समीकरण से स्पष्ट है कि –

  • जब t = ∞ तथा I = 0, अर्थात् परिपथ में धारा को अपने अधिकतम स्थायी मान से शून्य का मान प्राप्त करने में अनन्त समय लगता है।
  • परिपथ में धारा का क्षय घर घातांकी नियम के अनुसार होता है। अर्थात् प्रारंभ में धारा तेजी से घटती है तथा फिर धीरे-धीरे घटती है।

धारा में क्षय की दर

समीकरण (9) का अवकलन करने पर धारा क्षय की दर,
\frac{dI}{dt} = \frac{d}{dt} [I0e-(R/L).t]
या \frac{dI}{dt} = I0e-(R.t/L) (- \frac{R}{L} )
या \frac{dI}{dt} = I0 \frac{R}{L} e-(R.t/L)
अथवा
\frac{dI}{dt} = – I0 \frac{R}{L} \frac{I}{I_0}
अर्थात्
\frac{dI}{dt} = – \frac{R}{L} I …(10)
यहां ऋण चिन्ह यह बताता है कि समय बढ़ने पर धारा का मान घटता है। अर्थात् समीकरण (10) से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे धारा t का मान घटता है परिपथ में धारा क्षय की दर घटती है।

L-R परिपथ का समय-नियतांक

इसकी परिभाषा ऊपर दी गई है। अब समीकरण (9) में t = \frac{L}{R} रखने पर,
I = I0e-1 या I = I0 \frac{1}{e}
या I = I0 \frac{1}{2.718}
अर्थात्
\footnotesize \boxed{ I = 0.368I_0 } …(11)
अतः “प्रेरकत्व वाले परिपथ में समय नियतांक या कालांक वह समय है, जिसमें धारा का मान घटकर अपने अधिकतम मान का 36.8% रह जाता है।”

निष्कर्ष – हमें उम्मीद है कि यह आर्टिकल आपको पसन्द आया होगा तो इसे अपने दोस्तों में भेजें और यदि कोई सवाल या क्योरी हो, तो आप हमें कमेंट्स कर के बताएं हम जल्द ही उसका हल प्राप्त कर देंगे।

Note – परीक्षाओं में पूछे जाने वाले संबंधित प्रशन –
Q.1 श्रेणीक्रम में जुड़े प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध वाले एक परिपथ में धारा की वृद्धि तथा क्षय के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए? समय-नियतांक की सार्थकता समझाइए। तथा धारा वृद्धि व क्षय के ग्राफ खींचिए तथा इनमें समय-नियतांक को समझाइए।
Q.2 एक प्रेरकत्व तथा प्रतिरोधयुक्त परिपथ में धारा की वृद्धि की विवेचना कीजिए। परिपथ के कालांक से क्या तात्पर्य है?
Q.3 L-R परिपथ में धारा वृद्धि व क्षय का विश्लेषण कीजिए। समय-नियतांक को परिभाषित कीजिए?
Q.4 एक प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध युक्त परिपथ में धारा के क्षय की विवेचना कीजिए?

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