L-R परिपथ को तोड़ते समय वि. वा. बल, परिपथ को जोड़ते समय के वि. वा. बल से अधिक क्यों होता है?

l-r परिपथ में धारा की वृद्धि के समय ऊर्जा बताइए, l-r परिपथ में धारा का क्षय के समय ऊर्जा बताइए, दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा के लाभ तथा दोष बताइए, एक ऐसी परिपथ में धारा का वर्ग माध्य मूल मान 10 एंपियर है, धारा का शिखर मान क्या होगा,

L-R परिपथ को तोड़ने पर स्व-प्रेरित विद्युत वाहक बल

जब L-R परिपथ को तोड़कर परिपथ में धारा का प्रवाह बन्द किया जाता है तब परिपथ में वायु गैप का बहुत उच्च प्रतिरोध कार्य करने लगता है। अतः परिपथ के टूटने की स्थिति में उसके कालांक का मान परिपथ के जुड़े होने की स्थिति में उसके कालांक के मान से बहुत कम होता है। फलस्वरूप परिपथ के टूटने पर धारा क्षय की दर dI/dt परिपथ में जुड़े होने पर धारा वृद्धि की दर से बहुत अधिक होती है। अतः परिपथ में टूटने पर कुण्डली से बध्द चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर बहुत अधिक होती है।
चूंकि कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान अधिक होता है इस प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान कभी-कभी इतना अधिक होता है कि वायु गैप का विद्युत रोधक भंग हो जाता है और वायु गैप में चिंगारी उत्पन्न हो जाती है।

L-R परिपथ में धारा वृद्धि व धारा क्षय होने में ऊर्जा

जब किसी कुण्डली में धारा का प्रवाह शुरू करते हैं तो कुंडली में धारा बढ़ने लगती है और उसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जोकि धारा वृद्धि का विरोध करता है। अर्थात्
स्पष्ट है कि परिपथ में धारा को स्थापित करने में बैटरी द्वारा प्रेरित विद्युत वाहक बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। यह कार्य कुंडली में चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में एकत्रित हो जाता है तथा कुंडली के ओमीय प्रतिरोध के कारण धारा के प्रवाह में कुछ ऊष्मा भी उत्पन्न होती है। तथा बैटरी द्वारा दी गई कुल ऊर्जा उपरोक्त ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त धारा क्षय के समय कुंडली में संचित समस्त चुम्बकीय ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में बदल जाती हैं।

1. धारा वृद्धि के समय उर्जा

धारा वृद्धि के समय बैटरी से ली गई ऊर्जा की दर,
\frac{dE}{dt} = EI = EI0[1 – e-Rt/L]
या \frac{dE}{dt} = \frac{E^2}{R} [1 – e-Rt/L] …(1)
{चूंकि यहां I0 = \frac{E}{R} }
अतः ऊष्मीय ऊर्जा उत्पन्न होने की दर,
\frac{dH}{dt} = I2R = I20](1 – e-Rt/L)2 R
या \frac{dH}{dt} = \frac{E^2}{R} (1 – e-Rt/L)2 …(2)
प्रेरण के कारण चुम्बकीय ऊर्जा की दर,
\frac{dU}{dt} = \frac{d}{dt} ( \frac{1}{2} LI2) = LI \frac{d}{dt}
या \frac{dU}{dt} = LI0(1 – e-Rt/L). \frac{E}{L} e-Rt/L
या \frac{dU}{dt} = \frac{E^2}{R} e-Rt/L(1 – e-Rt/L) …(3)
अर्थात् समीकरण (1), (2) व (3) से स्पष्ट होता है कि –
\frac{dE}{dt} = \frac{dH}{dt} + \frac{dU}{dt}

2. धारा क्षय के समय ऊर्जा

धारा क्षय के समय प्रति सेकंड ओमीय प्रतिरोध में उत्पन्न ऊष्मीय ऊर्जा,
\frac{dH}{dt} = I2R
चूंकि धारा अपने अधिकतम मान से शून्य तक होने में अनन्त समय लेती है अतः उत्पन्न कुल ऊष्मीय ऊर्जा,
H = \int^∞_0 IR dt = \int^∞_0 I20R e-2Rt/Ldt

या H = I20R \int^∞_0 e-2Rt/L dt
तथा H = I20R ( \frac{ e^{-2Rt/L} }{-2R/L} )0
अथवा
H = – \frac{1}{2} LI20(0 – 1)
अर्थात्
H = \frac{dE}{dt} LI20

Note – सम्बन्धित प्रशन –
Q.1 L-R परिपथ में धारा वृद्धि तथा धारा क्षय होने के समय ऊर्जा बताइए?
Q.2 समझाइए कि L-R परिपथ में परिपथ को तोड़ते समय का विद्युत वाहक बल, परिपथ को जोड़ते समय के विद्युत वाहक बल से अधिक क्यों होता है? इसे सिद्ध कीजिए।

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