अनुनादी परिपथ क्या है? श्रेणी व समांतर अनुनादी परिपथ को लिखिए।, anunadi paripath, अनुनादी आवृत्ति का सूत्र, अनुनादी संरचना किसे कहते हैं, अनुनाद की स्थिति क्या हैं?, अनुनाद कितने प्रकार का होता है?, श्रेणी अनुनाद परिपथ का सूत्र क्या है?, श्रेणी अनुनादी परिपथ में प्रवाहित धारा का मान क्या है?, अनुनाद परिपथ का उपयोग किसके लिए किया जाता है?, परिपथ की अनुनाद आवृत्ति कितनी होती है?,
अनुनादी परिपथ
जब किसी प्रत्यावर्ती L-C-R वैद्युत परिपथ में मुख्य धारा i आरोपित वोल्टेज V की कला में होती है, तो प्रेरण प्रतिघात XL, धारितीय प्रतिघात XC के बराबर होता है वह परिपथ “अनुनादी परिपथ (Resonant Circuits in Hindi)” कहलाता है। अनुनादी परिपथ दो प्रकार के होते हैं:-
(1). श्रेणी अनुनादी परिपथ (Series Resonant Circuits in Hindi).
(2). समांतर अनुनादी परिपथ (Parallel Resonant Circuits in Hindi).
1.श्रेणी अनुनादी परिपथ
“श्रेणी अनुनादी परिपथ वह परिपथ है जिसमें आरोपित वोल्टेज की आवृत्ति परिपथ की स्वभाविक आवृत्ति के बराबर होती है।” अतः इस दशा में वोल्टेज V व वैद्युत धारा i समान कला में होते हैं तथा परिपथ का प्रेरण प्रतिघात XL, धारितीय प्रतिघात XC के बराबर होता है।
2.समांतर अनुनादी परिपथ
“समांतर अनुनादी परिपथ वह परिपथ है जिसमें परिपथ का प्रेरण प्रतिघात XL, धारितीय प्रतिघात XC के बराबर होता है तथा परिपथ की मुख्य धारा i आरोपित वोल्टेज V की कला में होती है।” अतः इस दशा में परिपथ की समांतर शाखाओं में धाराएं मुख्य धारा से अधिक होती है।
अनुनाद की स्थिति क्या है?
इस स्थिति में परिपथ की प्रतिबाधा न्यूनतम (R प्रतिरोध के बराबर) तथा परिपथ में प्रवाहित धारा i अधिकतम होती है। अर्थात्
श्रेणी व समांतर अनुनादी परिपथ के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध XL = XC है। अतः अनुनाद की स्थिति में, XL = XC तथा अनुनादी आवृत्ति का व्यंजक,
श्रेणी तथा समांतर अनुनादी परिपथ में अंतर
श्रेणी अनुनादी परिपथ | समांतर अनुनादी परिपथ | |
1. | अनुनाद की स्थिति में प्रतिबाधा न्यूनतम तथा धारा अधिकतम होती है। | अनुनाद की स्थिति में प्रतिबाधा अधिकतम तथा धारा न्यूनतम होती है। |
2. | इसमें L, C व R तीनों श्रेणी-क्रम में होते हैं। | इसमें L व C समांतर-क्रम में होते हैं। तथा R दोनों शाखाओं में लगा होता है। |
3. | इस परिपथ से उच्च वोल्टता प्रवर्धन प्राप्त होता है। | इस परिपथ से उच्च धारा प्रवर्धन प्राप्त होता है। |
प्रशन-1. एक परिपथ जिसमें एक प्रतिरोध R, प्रेरकत्व L तथा संधारित्र C श्रेणी-क्रम में एक सेल E से जुड़े हैं? प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध से होकर संधारित्र का आवेशन समझाइए।
L-C-R श्रेणी-क्रम परिपथ
माना कि एक परिपथ प्रेरकत्व L का एक प्रेरकत्व, धारिता C का एक संधारित्र तथा प्रतिरोध R का एक प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं तथा E विद्युत वाहक बल की एक बैटरी तथा एक द्विमार्गी कुंजी सम्बध्द है। बैटरी को स्विच s की सहायता से परिपथ से जोड़ा अथवा हटाया जा सकता है। जैसे कि चित्र-1 में दिखाया गया है।

प्रेरकत्व L तथा प्रतिरोध R द्वारा संधारित्र का आवेशन
जब स्विच s को a से जोड़ा जाता है तो संधारित्र C का प्रतिरोध R, प्रेरकत्व L के द्वारा आवेशन होने लगता है।
माना किसी समय t पर संधारित्र पर आवेश q है इस क्षण संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवांतर \frac{q}{C} होगा। तथा परिपथ में धारा i है, चूंकि आवेशन में धारा धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। अतः धारा परिवर्तन के कारण कुंडली में प्रेरित विभवांतर L \frac{di}{dt} आरोपित विद्युत वाहक बल E का विरोध करता है। अतः परिपथ में प्रभावी विद्युत वाहक बल प्रतिरोध R के सिरों के बीच विभवांतर के बराबर होगा। अर्थात्
L \frac{di}{dt} + Ri + \frac{q}{C} = E …(1)
चूंकि i = \frac{dq}{dt} तथा \frac{di}{dt} = \frac{d^2q}{dt^2}
अतः समीकरण (1) से,
L \frac{d^2q}{dt^2} + R \frac{dq}{dt} + \frac{q}{C} = E
या \frac{d^2q}{dt^2} + \frac{R}{L} \frac{dq}{dt} + \frac{q}{LC} = \frac{E}{L}
अब माना \frac{R}{L} = 2b तथा \frac{1}{LC} = n2, तब
d2q/dt2 + 2b dq/dt + n2(q – E/n2L) = 0 …(2)
माना यदि q – E/n2L = x तब dq/dt = dx/dt = d2x/dt2, अतः समीकरण (2) से,
d2x/dt2 + 2b dx/dt + n2x = 0 …(3)
अतः समीकरण (3) का व्यापक हल निम्न रूप होगा ।
x = Ae(-b+ \sqrt{b^2 - n^2} )t + Be(-b- \sqrt{b^2 - n^2} )t
तब q – E/n2L = Ae(-b+ \sqrt{b^2 - n^2} )t + Be(-b- \sqrt{b^2 - n^2} )t
चूंकि E/n2L = q0 रखने पर, अतः
q = q0 + Ae(-b+ \sqrt{b^2 - n^2} )t + Be(-b- \sqrt{b^2 - n^2} )t …(4)
जहां A व B एक नियतांक है जिनके मान सीमा प्रतिबंध t = 0 पर q = 0 तथा i = dq/dt = 0 लगाने पर,
A = – q0/2[1 + b/ \sqrt{b^2 - n^2} ] तथा B = – q0/2[1 – b/ \sqrt{b^2 - n^2} ] प्राप्त होते हैं,
तब समीकरण (4) से,
q = q0 – q0/2[1 + b/ \sqrt{b^2 - n^2} ]e(-b+ \sqrt{b^2 - n^2} )t – q0/2[1 + b/ \sqrt{b^2 - n^2} ]e(-b+ \sqrt{b^2 - n^2} )t …(5)
“यही L-R परिपथ में संधारित्र के आवेशन का अभीष्ट समीकरण है।”
अर्थात् b तथा n के आपेक्षिक मानों के लिए इसकी निम्न तीन स्थितियां होती है।
Case 1st. जब b > n – तब अति अवमन्दित आवेशन होता है। इस स्थिति में, R/2L > 1/ \sqrt{LC} या R > 2 \sqrt{L/C}
अतः समीकरण (5) से स्पष्ट है कि संधारित्र पूर्णतः आवेशित होने में अनन्त समय लेगा। जैसा कि ग्राफ-1 में दिखाया गया है।

इस प्रकार आवेशन को अनावर्ती तथा अति अवमन्दित या रुद्ध दोलन आवेशन कहते हैं।
Case 2nd. जब b = n – तब सह-क्रान्तिक अवमन्दन होता है। इस स्थिति में, R/2L = 1/ \sqrt{LC} या R = 2 \sqrt{L/C}
अतः समीकरण (5) से स्पष्ट होता है कि संधारित्र का आवेशन चरघातांकी नियम के अनुसार होता है और संधारित्र पूर्णतः आवेशित होने में अनन्त समय लेता है। इस प्रकार इसे क्रान्तिक अवमन्दन कहते हैं।
Case 3rd. जब b < n – तब दोलनी आवेशन होता है। इस स्थिति में, R/2L < 1/ \sqrt{LC} या R < 2 \sqrt{L/C}
इस स्थिति में यह एक काल्पनिक राशि है।
अर्थात् इस स्थिति में संधारित्र पर आवेश अवमन्दित दोलनों के साथ बढ़ता है। इस दोलनी आवेशन की कोणीय आवृत्ति,
ω = \sqrt{1/LC - R^2/4L^2}
इसलिए, आवृत्ति f = ω/2π
या f = 1/2π \sqrt{1/LC - R^2/4L^2}
अतः आवर्तकाल T = 1/f अर्थात्
T = 2π/ \sqrt{1/LC - R^2/4L^2}
नोट – इस प्रकार L-C-R श्रेणीक्रम परिपथ में प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध से होकर संधारित्र के आवेशन की तीनों स्थितियां को सिद्ध किया जा सकता है।